लकडाउन के चंगुल में शहरी जीवन

बहुत जगहों पर तो सन्तान कोरोना से मृत अपने अभिभावकों की जनाजे में भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं । अब जरा सोचिए कोरोना के भय ने हमारी मूल्यों पर किस कदर प्रहार किया है । आम जीवन और रोजमर्रा में भी कोरोना हस्तक्षेप कर रहा है। कोरोकाल में सुबह का सैर पिछले पखवाडे एक सुबह कोरोना संक्रमण के आतंक के बीच सहमता हुआ मैं शहर से पास की पहाडियों ओर चल ही रहा था कि दो और पैदल चलते बुजुर्गाें से मुलाकात हो गई । शहरी लोगों की रोजमर्रा में सुबह के सैर अर्थात् मर्निङ वाक को अब महत्वपूर्ण माना जाने लगा है । शहर के कुछ मरीजों को तो चिकित्सक भी रोजाना छ बजे से पहले ही पहाड की चोटी पर स्थित मन्दिर पहुँच कर देवी माँ का दर्शन करने से बिमारी उडन छू होने का मशविरा देने लगे हैं । फिर क्या करें कोरोना के कहर ने अब इस सुबह—सैर पर भी सेंध मारना शुरु कर दिया है । इस कम्बख्त भाईरस के प्रकोप में घर के दहलीज से बाहर पैर रखते ही संत्रास और जोखिम दोनों का साया लोगों के साथ साथ ही चलतीं है । रास्ते में पडने वाल...