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अब चीन और भारत बीच की दूरियों का मतलब एशिया की तबाही

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अमरीकी  स्वार्थ का कहीं भी केन्द्रित होने से वहा अधिकतर द्वन्द का बीजारोपण होता देखा गया है । इस समय एशिया और आसपास उसकी नजर है।  चीन और भारत को चाहिए कि वे अमरीकी पैंतरेबाजी को समझते हुये आपसी फसले को कम करें । नहीं तो, एशिया में आनेबाले दिनो मे  कई जगह भयानक द्वन्द हो सकते हैं । फिलहाल एशिया पर बाहरी दुनियाँ की तकरीबन सभी मौजूदा और मुकाम की ओर आगे बढ रही  महाशक्तियों की पैनी नजर है । पूर्वी एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में बढती रणनीतिक सरगर्मियों का यही मतलब निकाला जा सकता है । अगर कुछ अनहोनी नहीं होती है तो आनेवाले कुछ दशकों में ही एशिया विश्व का आर्थिक केन्द्र बनने की ओर अग्रसर है । इसी के चलते एशिया की भू—रणनीतिक महत्व ऐसी शक्तियों के लिए  निरन्तर बढता नजर आता है । शीतयूद्ध के समाप्ती के बाद रणनीतिक समीकरणों में आयी विखराव के बाद इस महाद्वीप में भूराजनीतिक समीकरण पुरानी से नई स्वरुप में ढल रहा प्रतीत हो रहा है ।   चीन की दूनियाँ में आर्थिक वृद्धि के जरिये फैलने की रणनीति, भारत का बढता अर्थतन्त्र और जापान की निरन्तर चलरही तरक्की से उत्पन...