लकडाउन के चंगुल में शहरी जीवन
बहुत जगहों पर तो सन्तान कोरोना से मृत अपने अभिभावकों की जनाजे में भी शामिल नहीं
हो पा रहे हैं । अब जरा सोचिए कोरोना के भय ने हमारी मूल्यों पर किस कदर
प्रहार किया है । आम जीवन और रोजमर्रा में भी कोरोना हस्तक्षेप कर रहा है।
पिछले पखवाडे एक सुबह कोरोना संक्रमण के आतंक के बीच सहमता हुआ मैं शहर से पास की पहाडियों ओर चल ही रहा था कि दो और पैदल चलते बुजुर्गाें से मुलाकात हो गई । शहरी लोगों की रोजमर्रा में सुबह के सैर अर्थात् मर्निङ वाक को अब महत्वपूर्ण माना जाने लगा है । शहर के कुछ मरीजों को तो चिकित्सक भी रोजाना छ बजे से पहले ही पहाड की चोटी पर स्थित मन्दिर पहुँच कर देवी माँ का दर्शन करने से बिमारी उडन छू होने का मशविरा देने लगे हैं । फिर क्या करें कोरोना के कहर ने अब इस सुबह—सैर पर भी सेंध मारना शुरु कर दिया है । इस कम्बख्त भाईरस के प्रकोप में घर के दहलीज से बाहर पैर रखते ही संत्रास और जोखिम दोनों का साया लोगों के साथ साथ ही चलतीं है । रास्ते में पडने वाले घरों के मंजिलों से लोग अनयास ही पूछते हैं “भई लोकडाउन में कहाँ जा रहे हो ?” फिर तो झुके सर सहमते हुये चलने के अलावा दूसरा रास्ता बचता ही कहाँ है । कुछ घरों के फाटक में ही तख्ती पर लिख के लटका दिया कि वे आप के घर में नहीं आयेंगे, आप भी उनके यहाँ जाने का कष्ट न करें । यह देखकर बडा अजीब लगता है । हमारे बुजुरुगों ने अपने घर में आनेवालों को लेकर कहा “अतिथि देवो भवः”। घर पर आने वालों को देवों का रुप मानते हुये उनकी आतिथ्य पर जोर दिया । हमारी संस्कृति में मेहमानों को परम्परा से ही आदर किया जाता रहा है । अब कोरोना कल्चर ने उसपर ही धावा बोल दिया है ।
कुछ समय पहले पास ही के शहर से अपने ही गाडी में कोराना परिक्षण करवा रहे पिता ने अपने इकलौते बेटे और बहुको रास्ते में ही फोन पर लौट जाने के लिये फटकार लगाई । पिता ने कहा हमें जो भी हो तुम्हे सूरक्षित रहना है । बेटा आँखों में आँसु लेकर लौटने को विवश हो गया । बहुत जगहों पर तो सन्तान अपने मृत अभिभावकों की जनाजे में भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं । अब जरा सोचिए कोरोना के भय ने हमारी मूल्यों पर किस कदर प्रहार किया है ।
उस दिन आगे बढते हुये रास्ते में पुलिस के जवान भी हमारे उम्र का लिहाज करते हुये नरम शब्दों में कडवे बात सुना ही गया “ चचा उम्रदाराजी में और जिने की चाह मर गई है या फिर बुढापे में पर निकल आये हैं ?” आनन फानन में मजबूरी का हवाला देकर आगे निकलने के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं । कुछ आगे निकलने के बाद पिछे मुड कर देखने पर वही पुलिसवाले कुछ युवाओं पर डण्डे बरसाते हुये दिखाई देते हैं । दिल में डर का महौल और घना हो जाता है । सर पे पके बालों का होना भी आज किस्मत को इत्तेफाकन छक्का दे गया था । फिर तो घर से निकलते ही दिलका सहमना स्वभाविक ही है न । सुबह की सैर में कदम कदम पर इस तरह की घटनाएँ दिमाग पर बारबार हथौडे से वार करती है तो मजबूरन सहमना ही पडता है न ।
इस कोरोना के साम्राज्य में जो कुछ हो रहा है वह तो किसी के बाप दादाओं ने सपने में भी कभी सोचा ही नहीं था । दोनों बुढउ बस ऐसी ही आपबीती हँसते हुये सुनाने लगे जो मैं भी सोचता और भुगत रहा हूँ । दोनों दिल के बिमारी हैं । इन दोनों को जानकारी है कि शारीरिक काम न करने वालों को सुुबह की सैर सेहत को बनाये रखने के लिये जरुरी है । एक कहता है — “साला कोरोना हम को लगने से पहले हमारे सुबह सैर को लग गया । कहते हैं बुढों और बीमारों का जानी दुश्मन है कोरोना । सुबह सैर को तो लग ही गया कम्बख्त अब हमें भी निगलने वाला हैं” । दूसरा ठहाके मारते हुये कहता है । “चलो भई हमने अपनी जिन्दगी जी ली है हमारे चूजों पर इसकी साया न पडे ।” पहले ने फिर कहा— “परसों सुबह घर से निकलने ही वाला था कि रास्ते किनार की छोटी दीवाल पर एक काला कलुटा पुलिसवाला बैठा दिखाई दिया । फिर तो पैर अपने आप पिछे हो गये । दो घंटे तक उसके जाने का इन्तजार करता ही रहा कि उसके हटते ही निकल लूँ । वो है कि मूरत की भाँति पडा रहा । इतने में पिछे की गली से महानगर की चेतावनी उँची आवाज में सुनाई देने लगी कि महानगरवासी घर से बाहर न निकलें । उस दिन की सुबह सैर पर कोरोना का खग्रास ग्रहण लग ही गया ।”
कई लोग तो कह रहे हैं कि यह एक जुकाम की तरह एक सामान्य फ्लु है । इसको पुरी दूनियाँ में एक षड्यन्त्र के तहत महामारी के रुपमें प्रचारित किया जा रहा है । अमरीका जर्मन बेलायत जैसे देशों में लोगों नें इस के खिलाफ कई जगह प्रदर्शन भी किये हैं लेकिन संक्रमण करोडों में और मौतों के आँकडे लाखों क्यों है ? इसी को रोकने को लेकर दूनियाँ भर लोगों को महिनों तक घरों में क्यों पडे रहने को कहा जा रहा है ? अगर कोरोना कुछ नहीं है तो दूनियाँ की अर्थ व्यवस्था की पहिये को रोका जा रहा है जो आनेवाले लम्बे समय तक भूखमरी का मातम लाने वाला है ? पहाड की चढाई पर चढते और हाँफते हुये कोरोना पर तीनों के बीच अपने औकात के मुताबिक चिन्ता भरी चर्चाएँ होती रहीं । पास के ऊँचे टीले पर एक आदमी बैठ कर योग की मुद्राओं पर अमल करने का प्रयास कर रहा था । कुछ औरतें पीठ पर सब्जियों का बोझ ढोये उपर से हमारी तरफ आ रही थीं । एक मित्र ने उन अपरिचत औरतों से पूछा — लकडाउन में कहाँ जा रहीं हैं ? गुस्से भरी आँखें तरेरती एक ने बिन रोके बोली —“ हमारे बच्चों को खाने को आप देंगे क्या ?” फिर तो जबाव में मित्र ने कुछ कहने की जुर्रत नहीं की । दूसरे ने बिन समय गवाँये के कहा — “भई माता काली से साक्षात् दर्शन हुये न ।” फिर सभी को हँसने को मजबूर होना ही पडा ।
काले बादलों के टुकडों बीच आसमान में सूरज अाँखमिचौनी खेल रहा था । बनियान के अन्दर अौर मस्तक से एक साथ पसीने की छोटीमोटी दरिया ही बहने लगी थी । मुँह से श्वासप्रश्वास के अलावा बातों को कह पाना थोडा तकलीफ होने लगा था । पैरों की गती कुछ धीमी पड गई थी । उसी गती के साथ गप्पें भी चलती रहीं । दूनियाँ में फ्लु से होने वाले मौतों का आँकडा केवल दो फिसद बताइ जाती है । दिल और क्षयरोग से मरनेवालों का अलग अलग आँकडा अकेले ७ फिसद के आसपास है । इस बात को सुनते ही रक्तचाप की शिकायत वाला बुजुरग कुछ आतंकित सा दिखाई दिया । दूसरे ने हँसते हुये कहा “और कितनों को सताना बाँकी है कहाँ मरोग इतनी जल्दी तुम । ” फिर हँसी फुट पडा । बातें आगे बढीं । क्षयरोग, दिल और अन्य बीमारियों के पुराने कमजोर मरीज कोरोना के शिकार हो रहे हैं । इन मौतों की गिनती भी कोरोना ही के खाते में दर्ज हो रही है । इसलिये कोरोना संक्रमितों की मौत के आँकडों की संख्या बढी है । जंगल के बीच से उपर की ओर गुजरते रास्ते के किनारे पर खडे होकर हम तीनों नीचे शहर का मनोरम नजारा देखने लगे । आगे बर्फ से ढका माछापुच्छे « पर्वत खडा दिखाई दे रहा था । नीचे से शितल बयार उपर की ओर बह रहा था । एक असीम आनन्द मिला ।
एक ने जेब से सेनिटाईजर की सीसी निकाली और थोडा अपनी हथेली पर डालकर दोनों हाथ मल लिया । दूसरे ने कहा “ ओए मक्खिचूस हम दोनों को कोरोना के हत्थे बलि चढाकर खूद दूनियाँ का मलाई मारना चाहता है क्या, ला इधर ।” फिर हँसी के फौब्बारे छुटे । हम दोनों ने भी सेनिटाईजर का इस्तेमाल किया । इसको कोरोना के संक्रमण को रोकने का उम्दा तरीका बताया जा रहा है ।
बचपन में दादा दादी कहा करते थे, बाहर से आकर हाथ मुँह धोने के बाद ही दहलीज से अन्दर आओ । खाना खाने के लिए रसोई में कपडे बदलकर आओ । बाहर से आकर घर के छोटे बच्चों को हाथ मत लगाओ । शायद यह सब संक्रमणों को रोकने के पुराने तरीके थे । तब हमें लगता था यह सब न करने से पाप लगता है । देवता को खुश रखने के लिए यह सब आवश्यक है । यह वास्तव में संक्रमण से बचने के लिये अपनाये जाने वाले पुराने नुक्शे थे । अब पानी सर के उपर उठने को है तब विदेश से आनेवाले इस्तेहारों को देखकर ही हमें यह सब विश्वास करना पड रहा है । घर की मूर्गी दाल बराबर । तीनों फिर गम्भिर सोच में पड गये ।
अचानक एक पुलिस की जीप उपर पहाड की ओर से आकर हमारे सामने रुकी । मुँह पर से मास्क हम सभी ने पहले ही उतार रखे थे । कहा तो जाता है कि मुँह पर मास्क हाथों पर पन्जे और साथ में सेनिटाइजर होना चाहिये जैसे कवच पहन कर महाभारत की लडाई में जा रहा हो । गाडी को देख कर सभी ने जेब से जल्दबाजी में मास्क निकाला और धारण कर लिये । लगा, कोरोना के नाम पर एक और नौबत सामने खडी है । हवल्दार साहेब और एक सिपाही हाथों में डण्डे लेकर गाडी से रौब के साथ नीचे उतरे । साहेब ने हमें आदेश में कहा “चलिये गाडी में बैठ जाईए,”। मन में लगा, सफेद बालों का फारमूला इसबार फेल हो जायेगा । हमें पता था पुलिस लकडाउन को चेतावनी के बावजूद भी उल्लंघन करने वालों को उठा ले जाती है और दिनभर जिला मुख्यालय मेें कोरोना की बात सुनाने के बाद शाम को छोड देती है । इस तनाव के बीच एक मित्र ने साहेब से विनती की “सर पास के गाँव में मेरी बहन बीमार है उससे मिलने जा रहें हैं । कल रात से उसे दस्त की शिकायत है और ये मेरे मित्र हैं ।” साहेब ने कहा “फोन नम्बर और नाम दीजिए मैं एम्बुलेंस भेज दूंगा ।” मित्र उल्झन में पड गया न नाम ही बता पाया ना ही फोन नम्बर । फिर हवल्दार ने ऊँची आवाज में गाडी में बैठने को कहा । हमारा झूठ पकडा गया था । आज सुबह सैर का मजा किरकिरा हो गया । हमें गाडी में बैठना ही पडा । गाडी चल पडी । दूसरे मित्र ने हवल्दार को पटाने हेतु एक जाल फेंकते हुये विनम्रता से कहा “सर का घर कहाँ पडता है ?” सहेब ने तपाक् से जबाव दिया “ यह गाडी ही मेरा घर है ।” मित्र पंचर हुये टायर की भाँती हो गये । सभी मौन रहे । लगा कि आज दिनभर भूखे पेट पुलिसों की फटकार सुननी पडेगी । गाडी पहाडी से नीचे उतर कर शहरी इलाके में प्रवेश कर चुकी थी । कुछ दूर जाकर साहब ने पुछा “ कहाँ उतरना है ?” हमें विश्वास ही नहीं हुवा कि वही पुलिस वाला हम से कुछ पुछ रहा है । मैने जल्दबाजी में उसी जगह उतरने को कहा । साहेब ने कहा “ आगे मैनें फिर आप लागों को इसतरह सडक में सैर करते देखा तो छोडूँगा नहीं ।” हम वचन देते हुये उतर गये और गाडी चली गयी । जान बची लाखों पाये । गाडी में तो हम और आगे तक जा सकते थे परन्तु उस गाडी में और चन्द मिनट रहने से पुलिस की चंगूल से निजात पाना ही श्रेयस्कर लगा । हम तीनों रास्ते के किनारे खडे होकर खुब हँसे और अपने अपने घर का रास्ते पकड लिये ।
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