नेपाल से एक सुखद यात्रा ः देहरादून से अयोध्या तक
पुराने जमाने में भी यात्राएँ हाेती थी मगर आज के मुकाबले बहुत ही कष्टकर हाेती थी । विज्ञान कि खाेजाें ने अब यात्राएँ काफी आसान हाे गयी है । बुटवल से यात्रा की तयारी में लक्ष्मण,गंगा और गिता सन् १९९० में भारत से मेरे लौटने के तकरीबन तीन दशकबाद इसबार पारीवारिक भारत यात्रा की एक योजना अचानक बनी । तब अपनी अब तक की आधी उम्र तक भारत में रहने के पश्चात अपने घर नेपाल वापसी की थी मैने । लौटने के बाद आनन फानन में बरसों बित गये । पलटकर कभी उन लम्हों को बारीकी से स्मरण करने का अवसर भी प्राप्त नहीं हुआ । इसबीच गंगा जमुना और ब्रम्हापूत्र नदी और नद में काफी पानी बह चुका था । समय के रफ्तार के साथ साथ सब कुछ बदलता गया था । तबकी पीढी अब उम्रदराज हो चुकी थी । उसके बदले में आयी नयी पीढी के दम पर हिन्दूस्तान और तरुण हो चला था । इन दिनों मैं पता नहीं क्यों मैं गती से कहीं अधिक स्थिरभाव और सामुहिकता से कहीं अधिक एकान्त प्रिय हो चला हुँ फिर भी तरुणाई से भरे इस बदलाव को नजदीक से महसुस करते हुये पुरानी यादों को पुनरताजगी देने के लिए भी इस यात्रा को अंजाम देने के लिए मैं उत्सुक था । इस यात्रा की...
And the struggle for the Iron Throne begins.
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