भारतः मिडिया पर मोदी सरकार का कसता सिकंजा


    



लोकतन्त्र   में जनमत निमार्ण करने और शासकों और उसके संयन्त्रों को जनमत से सूचित होने के लिए मिडिया की अपरिहार्यता को कोई भी नकार नही सकता । मिडिया जनता को सचेत और सत्ता को सतर्क करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इसलिए लोकतन्त्र में मिडिया को चौथा अंग कहाजाता है                                                  

         पिछले दिनों भारतीय लोकप्रिय टेलिविजन न्युज चैनल एबीपी पर सत्ता की ओर से की गयी हैरानियों की सिलसिलेवार फेहरिस्त सुनने और पढने को मिल रही है । यह चैनल भारतीय संचार के क्षेत्र में चिरपरिचित आनन्दबजार पत्रिका ग्रुपद्वारा संचालन में है । चैनल के वरिष्ट पत्रकार और संपादक पुण्य प्रसुन वाजपेयी की विष्लेसणात्मक कार्यक्रम माष्टर स्ट्रोकको विशेषकर ताक में रखा गया । चैनल पर प्राविधिक रुपसे भी अवरुद्ध करने का प्रयास किया गया । प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्रियो का नाम, तस्वीर व प्रसंग्र का प्रसारण न करने के लिए दबाव दिया गया । बीजेपी के नेताओं को एबीपी को किसी तरह की सूचना न देने  और संवाद से परहेज करने को कहा गया ।

किसी एक सूचना प्रवाह करनेवाली मिडिया को सरकार के कामों को लेकर समर्थन व आलोचना करने पर पाबन्दी लगा दिया जाना आश्चर्य की बात है । भारत मोदीमय हो चला है । उनका कद इतना ऊंचा है कि अन्य मंत्रीगण भी बौने लगते हैं । ऐसे में किसी एक चैनल पर शिकंजा कसने का मतलब गैरलोकतांत्रिक असहिष्णुता नहीं तो और क्या हो सकता है ? अगर यही सच है तो सरकार के प्रभावशाली प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी एवीपी से इस कदर डरना अशोभनिय लगता है ।
  
इसका मतलब तो यही होता है कि सरकार सभी मिडिया से अपनी प्रसस्ती गवाना चाहती है । आखिर उस मेें अपनी आलोचना सुनने की धैर्यता की कमी क्यों हो गयी है ? भारत जो लोकतन्त्र के लिए दुनिया के लिए मिशाल रहा है उस पर क्या नौबत आयी कि अपनी छवि को ताक में रखना पडा ।

वैसे मोदी सरकार पर अल्पसंख्यक और भिन्न विचार रखनेवालों पर अनावश्यक सख्ती बरतने का आरोप पहले से ही लगता रहा है । एवीपी चैनल के साथ किए गये इस बरताव को भी एक कडी माना जा सकता है । जो स्वयं सरकार के लिए भी नुक्सानदेह हो सकता है ।  
       

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