राष्ट्रसंघ में अजहर को चीन का कवचः भारत परेशान
भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ से मौलाना मसुद अजहर को दुनिया का आतंकवादी घोषित करवाना चाहता था परन्तु चीन ने इसबार भी इस प्रस्ताव पर विटो प्रयोग कर निरस्त कर दिया है । पाकिस्तान ने भी भारत की वालकोट कार्यवाही के बाद जैस ए मोहम्मद के कुछ लागों को वारन्ट जारी कर अपने को अलग दिलाने का प्रयास किया है परन्तु भारत इससे संतुष्ट नहीं है ।
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मौलाना मसूद अजहर |
छब्बीस फरवरी को भारतीय वायुसेना ने नियन्त्रित रेखा पार कर बालकोट में आतंकवादियों के ठिकानों पर बम ही नहीं गिराया अपितु तकरीबन तीन सौ आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया । उसके दो दिनबाद २८ फरवरी को जैस के एक साप्ताहिक पत्र अल कलम में मौलाना मसुद अजहर ने छदम नाम से लिखा— “भारत के दिमाग ने काम करना छोड दिया है । वह हमें डराना चाहता है । हम धम्कियों से डरे नहीं है वल्की और उत्तेजित हो गये हैं ।” उसके इन शब्दों में भारत के प्रति काफी गुस्सा दिखाई देता है । भारत का मानना है कि मसुद अजहर का पाकिस्तान की सेना से लेकर खुफिया एजेन्सी उपरी हिस्से तक पहँुच है और खुफिया संयन्त्र के योजना के तहत काम करता है । इसलिये भारत का गुस्सा आतंकवादियों से पहले पाकिस्तान पर आता है ।
पिछले एक दशक में भारत ने जैस ए मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को दुनिया का आतंकवादी घोषित करवाने के लिये संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद् में एक दो नहीं चारवार प्रयास किया । परन्तु, चीन के विटो के कारण भारत की मंशा पुरी नहीं हो सकी । सुरक्षा परिषद् के अमरीका, बृटेन, फ्राँस और रुस जैसे देश इस मसले पर भारत के साथ होते हुये भी चीन के कारण उसे कामयाबी नहीं मिल सकी ।
पुलवामा हमले के बाद भारत रुस के साथ भी इस मामले को लेकर निरन्तर कुटनीतिक सम्पर्क में रहा । भारत और रुस के बीच सोवियत काल से ही दोस्तान तल्लुकात रहे हैं और चीन और रुस भी इस समय करिबी रिश्ते में हैं । भारत को उम्मिद थी कि रुस चीन को मनाने में सहायक होगा परन्तु इस समय भी उसे सफलता हाथ नहीं लगी ।
विगत में मौलाना मसुद अजहर सोवियत सेना के खिलाफ अफगानिस्तान में हर्कत उल अन्सार की ओर से छापामार युद्ध में शामिल था । सोवियत संघ के पतन के बाद के दिनों में भारत और अमरीका के बीच बढती नजदिकियों के बावजुद भी रुस और भारत के बीच की घनिष्टता में कोई खास फर्क नहीं आया है, और रुस भारत के साथ अभी भी अन्तरराष्ट्रिय मंचों में खडा होकर भारत को अपने पास ही रखना चाहता है । संभवतः यही कारण था कि रुस अजहर के खिलाफ रहता आया है । रुस में तकरीबन १५ फिसद मुश्लिम आबादी है । धर्म के लवादों में दुनिया में बिते कुछ दशकों से चलरहा आतंकवाद पर भी रुस की पैनी नजर है । अजहर जैसे लोग दुनियाँ में अपना नेटवर्क फैलाना चाहते हैं । देर सबेर रुस भी उस के चपेट में आने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता था ।
चीन क्यों मसुद अजहर को बचान चाहता है ?— इस सवाल का कोई सिधा जवाफ नहीं है । वैसे चीन और भारत के बीच के रिश्ते आर्थिक सवाल पर सुधरते आ रहे हैं तो सामरिक हिसाब से उतने भरोसेमन्द भी नहीं है । दोक्लाम विवाद इसका पुख्ता सबुत है । भारत अपनी रक्षा संयन्त्र को चीन और पाकिस्तान को ही नजर में रखकर चुस्त रखना चाहता है । चीन में भी स्वभाविक रुपसे यह प्रवृत्ति है । दुसरी बात चीन के महत्वकांक्षी योजना बीआरआई के खिलाफ मोरचेबन्दी में भारत अमेरीका की नेतृत्ववाली खेमें में महत्वपूर्ण भूमिका के साथ सक्रिय है । भारत अपने पासपडोस में चीन के तेजी से फैलते पैंतरे के कारण कुछ ज्यादा ही ससंकित है । पाकिस्तान में बीआरआई योजना के तहत चीन बडी पुँजी निवेश कर चुका है । इसके लिए भी चीन पाकिस्तान के करीब खडा है । पाकिस्तान को दुनियाँ से अलगथलग करने की भारत की रणनीति के कारण पाकिस्तान के पास भी चीन के साथ नजदीकियाँ बढाने के अलावा दुसरा चारा नहीं है ।
वैसे दोक्लाम विवाद के पश्चात भारत और चीन कुटनीतिक सक्रियता में काफी तेजी देखने को मिल रही थी । चीनी राष्ट्रपती सिजिम्पीङ और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच उच्चस्तरिय वार्ताएं भी हो गई थी । उम्मिद थी कि दोनों देशों के बीच के रिश्तों में जमी बर्फ कुछ हदतक पिधल गया है । दिल्ली में भी कहीं न कहीं उम्मिद की पतली लकिर बन गई थी कि मसूद राष्ट्रसंघ में अजहर के मसले पर चीन इसवार कुछ भारत के लिए सकारात्मक बन जाये । परन्तु ऐसा नहीं हुआ । इसका मतलब यही माना जा सकता है कि एशिया के इन दो बलिष्ट देशों के रिश्तों में अभी भी ढेर सारा बर्फ का पिघलना बाँकी है ।
दक्षिण एशिया में चीन और भारत के बीच के रिश्तों को विश्वास के बुनियाद पर खडा किए बगैर दोनों की चाहत पुरी होने में कठिनाई की संभावना साफ दिखाई देता है । पाकिस्तान को साईज में रखने केलिए भी भारत को चीन को साथ लेना पहला शर्त सा दिखाई देता है । अपने पास पडोस की समस्याआं को लेकर बाहर के देशों को साथ लेने का प्रयास दीर्घकालिन सफलता नहीं दे सकता । उसके लिए आपस में ही समाधान ढुंढना सही कुटनीति हो सकती है ।
Terrorism never remain the part of human being. Dialogue is the best way of diplomacy.
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