डा. कन्हैया कुमार: भारतीय सत्ता विकल्प के बहस की एक कडी
भारत के चुनाव की सरगर्मियों के बीच बिहार के बेगुसराय से भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के युवा प्रत्यशी कन्हैया कुमार की ओर सभी की नजर है ।
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कन्हैया कुमार |
कन्हैया बिते दो साल से ही सामाजिक संजाल में भी लगातार छाया हुआ नाम है । सारे भारत में उनको अपनी विचारों को रखने के लिए विभिन्न मंचों में आमन्त्रित किया जा चुका है । अभिसार शर्मा, पुण्यप्रसुन वाजपेयी और रवीश कुमार जैसे स्वयं को सत्ता की स्वेच्छाचारिता से पिडित बतानेबाले वरिष्ठ पत्रकारों ने भी सरकार की तीखी आलोचना की है । हाल ही में सैकडों कलाकारों ने भी भारतीय जनतापार्टी को चुनाव में वोट न देने की अपिल जनता से की है । गुजरात के युवा नेता जिग्नेश मेवानी कनहैया के समर्थन में बेगुसराय में ही हैं । बॉलीवुड के सबाना आज़मी, जावेद अख्तर और स्वरा भास्कर के भी बेगुसराए आने की बात कही जारही है। इसके कारण भी कन्हैया एक राजनीतिक शक्ल में उभर आया है ।
कन्हैया का वैकल्पिक बहस
कन्हैया बर्तमान सरकार के प्रति कटुआलोचक हैं । उन्होने हरएक मंच से हासिये से बाहर के किसान, मजदुर ,महिला, दलीत और अल्पसंख्यकों का पक्षपोषण किया है । वे सभी मंचों से कहरहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद देश को धर्मनिरपेक्ष के बजाये जबरन हिन्दुत्व की ओर लेजाने की कोशिसें चल रही है । वीजेपी के लोग खुलेआम कहते आरहे हैं कि अन्य धर्मेा को भारत में हिन्दुत्व के मुल्यों की सिमा में रहना होगा । इसमें जिन को एतराज है उन्हें पाकिस्तान चले जाने की सलाह दिया जा रहा है । भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता के बुनियाद पर बना हैै परन्तु सत्तारुढ दल स्वयं संविधान पालन करने के वजाय खिलाफत कर रहा है ।
स्वतन्त्र मिडिया को भाजपा की सत्ता का लगातार कोपभाजन बनना पड रहा है । अपने से भिन्न विचार रखनेवालाें पर दमन करने के कारण लोकतन्त्र को कमजोर करने का काम हो रहा है । सरकार से प्रश्न पुछनेवालों को देशद्रोही करार दिया जारहा है । संविधान के द्वारा दिये गये अधिकारों से लोगों को वंचित किया जा रहा है — कन्हैया कहरहे हैं ।
जतिय और धार्मिक अल्संख्यक और दलितों पर अत्याचार किया जारहा है । देश में सोलह हजार किसानों को आत्महत्या करने विवश कर दिया गया है । सरकार आमलोगों के बदले करपोरेटवालों की सेवा करने में जुटी है । चुनाव में जनता से किये गए वायदो से सरकार मुकर चुकी है। हम सभी को संविधान विरोधी सरकार से निपटने के लिए एकसाथ खडा होने की आवश्यकता है — कन्हैया अपिल कर रहे हैं ।
बेगूसराये की स्थिती
बेगूसराय बडे राजनीतिक हस्तियों की चुनावी क्षेत्र के समान इस समय चरचों पर है । बेगूसराय भाकपा का प्रभाव क्षेत्र माना जाता रहा है । फिर भी पिछले चुनाव में यह लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी को मिली थी । इसवार भी भारतीय जनतापार्टी ने एक पूर्वमंत्री गिरिराज सिंह को अपना प्रत्यशी बनाया है । वैसे कन्हैया भाजपा विरोधी मतों को एक जगह लाने की बात बताते आये है परन्तु बेगूसराय में भाजभा के खिलाफ वे इकलौते प्रत्यशी नहीं हैं ।
भाकपा, भाजपा विरोधी महागठबन्धन में भी शामिल नहीं है । बेगूसराय में महागठबन्धन की ओर से राष्ट्रिय जनता दल ने तनवीर हसन को खडा किया है । इससे इसक्षेत्र में तीकोणी संघर्ष की संभावना प्रबल है । वैसे तेजतर्रार कन्हैया को जित का पहला दावेदार भी माना जा रहा है । विपक्षी मतों की संभावित बिखराव से भाजपा को लाभ की संभावना को नकारा नहीं जा सकता । कन्हैया और गिरिराज और कन्हैया भूमिहार समुदाय से है। इससे भूमिहार वोटों की बिखरने की सम्भावना भी है । कन्हैया को अपनी गृहक्षेत्र से अधिक मत आकर्षित करने में सफलता मिलने की बात बताई जारही है ।
बिहार से दिल्ली तक
सन् २०११ में बिहार से चौबिस साल की उम्र में दिल्ली की चकाचौंध में प्रवेश करनेवाला यह गुमनाम से चेहरे की चन्द सालों में चरचों के शिखर तक पहुँचने की हकिकत कम हैरतअंगेज नहीं है । वैसे कन्हैया पटना में कलेज पढते समय ही एसएफआई के सदस्य बन चुके थे और नाट्य संस्था इण्डियन पिपुल्स थियटर एशोसिएसन से जुडे थे । इससे प्ररम्भिक दिनो से ही उनकी वामपंथ की ओर रुझान का पता चलता है । संभवतः यह उनकी जन्मभूमि बेगुसराय का ही देन था । भूमिहार कहेजानेवाले ऊँची जाती में जन्मलेने के वावजुद भी बेगूसराय की वामंपंथी परिवेश ने उन्हे हासिये से बाहर की जनता के वारे में समझ रखने को प्रेरित किया । उन्होने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और २०१५ में स्वतन्त्र विद्यार्थी युनियन के प्रेसिडेन्ट पद पर चुनलिये गये ।
बिहार से दिल्ली तक
सन् २०११ में बिहार से चौबिस साल की उम्र में दिल्ली की चकाचौंध में प्रवेश करनेवाला यह गुमनाम से चेहरे की चन्द सालों में चरचों के शिखर तक पहुँचने की हकिकत कम हैरतअंगेज नहीं है । वैसे कन्हैया पटना में कलेज पढते समय ही एसएफआई के सदस्य बन चुके थे और नाट्य संस्था इण्डियन पिपुल्स थियटर एशोसिएसन से जुडे थे । इससे प्ररम्भिक दिनो से ही उनकी वामपंथ की ओर रुझान का पता चलता है । संभवतः यह उनकी जन्मभूमि बेगुसराय का ही देन था । भूमिहार कहेजानेवाले ऊँची जाती में जन्मलेने के वावजुद भी बेगूसराय की वामंपंथी परिवेश ने उन्हे हासिये से बाहर की जनता के वारे में समझ रखने को प्रेरित किया । उन्होने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और २०१५ में स्वतन्त्र विद्यार्थी युनियन के प्रेसिडेन्ट पद पर चुनलिये गये ।
बौद्धिक बहस जेएनयु की परम्परा रही है । अब भी इसकी प्रतिष्ठा बरकरार है । कन्हैया को जेएनयु की परिवेश ने नई उर्जा दिया । विचारों के विभिन्न पक्षों से उन्हे परिचित होने का मौका मिला ।
सन् २००१ में भारतीय संसद में बम आक्रमण का दोषी कश्मिरी पृथकतावादी अफजल गुरु की फाँसी के विरोध में विश्वविद्यालय परिसर के अन्दर देशविरोधी प्रर्दशन करने के आरोप में सन् २०१६ में कन्हैया, सहेला रशीद, अनिर्वान भट्टाचार्य, उमर खालीद लगायत दश छात्रों के खिलाफ वारन्ट जारी किया गया । भाजपा सांसद महेश गिरी और भाजपा का विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की शिकायत पर यह वारण्ट जारी किया गया था । कन्हैया ने इन आरोपों से साफ इन्कार किया है । फरवरी १२ तारीख को कन्हैया को गिरफ्तार किया गया । उनको तिहाड जेल में रखा गया । उन पर १५ फरवरी को पटियाला हाउस अदालत लेजाते वक्त वहीं पर सत्ता समर्थकों द्वारा हाथापाई की गई । उसके दो दिन बाद उन पर फिर से आक्रमण किया गया ।
सत्ता पक्ष के इन तमाम वारदातों ने कन्हैया को तोडा नहीं जा सका, बदले में और ख्याति मिली है । आरोपित विद्यार्थियों की बातों को सुनकर ऐसा कतई नहीं लगता है कि वे राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में सक्रिय थे । वे साफ बता रहे हैं कि भारतीय संविधान के प्रति अटुट आस्था हैं और कश्मिर भारत का ही अभिन्न है । मार्च २ , २०१६ को अदालत ने जमानत पर कन्हैया को रिहा कर दिया । उसके बाद वे राजनीति के सेलीब्रेटी से बन से गये । सच कहा जाये तो कन्हैया को चरचा के शिखर तक पहुँचाने का काम भारतीय जनता पार्टी की विपक्षियों के प्रति गलत दृष्टिकोण ने ही किया ।
भारत में इसी अप्रैल ग्यारह तारीख से सात चरणों में सत्रहँवे लोकसभा के लिए चुनाव तय किया गया है । चुनाव में कई मुद्दों का जबरजस्त बयार भी बह रहा है । सत्तारुढ भारतीय जनतापार्टी चारसाल पहले विकास के मुद्दे को लेकर दिल्ली की सत्ता पर पहलीवार पहुँच गई थी । पर इसबार जनता के सामने परख के लिए उसके बिते कार्यकाल में किये गए अच्छे बुरे कामों का लेखाजोखा भी है । देखना यह है कि कन्हैया की वैकल्पिक राजनीति चुनाव में कितना कारगर हो सकता है ।
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