नरेन्द्र मोदी की जित का मतलब : केसरिया भारत ?


तमाम अट्कलबाजियों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने २०१९ के लोकसभा चुनावों में भारी मतो  से दुबारा शानदार विजय हासिल किया । भारत की आवाम ने फिर से दिल्ली की हुकुमत का बागडोर पाँच सालों के लिए नरेन्द दामोदर मोदी के हाथों सौप दिया है । देखना यह है कि ये पाँच साल मोदी दुनिया के बडे लोकतन्त्रिक देश में तरक्की के कितने चाँद लगा पाएंगे ।

जित के बाद नरेंद्र मोदी
 वैसे २०१४ के चुनावाें में मोदी विकास और भ्रष्टाचार मुक्त समाज के मुद्दे लेकर आये । जिसको जनता ने मतों के जरिये रजामन्दी दे दी थी । उनके मुख्यमंन्त्रित्व काल में गुजरात में अपनाये गये विकास के मोडेल ने जनता को मोदी पर विश्वास करने का आधार दिया था परन्तु  भाजपा ने इसबार का चुनाव २०१४ के अन्दाज में नहीं लडा चूंकि उसके पास पाँच साल सत्ता में रहने का अनुभव था और सत्ता का बलशाली मैकेनिज्म भी था । इन सबों का साथ भाजपा को उसीतरह मिला जिस तरह विगत की काँग्रेस सरकारों को मिला करती था ।
 
  इसबार भाजपा की चुनाव जितने की रणनीति बहुत ही आक्रामक होते हुये भी हिन्दुराष्टवाद के अलावा अन्य मुद्दों पर केन्द्रित नहीं  था । भारत जैसे गतिशील अर्थतन्त्र को विश्वमंच पर और आगे लेजाने के लिए आवश्यक मुद्दों ने चुनाव में कहीं भी जगह नहीं पाया । नीचले तबके के लोगों की चिन्ता भी सरोकार नहीं बन सकी ।  राष्ट्रवाद के संवेदनशील सवाल के नाम पर ही भाजपा ने यह चुनाव लडा । पुलवामा में हुये आतंकी हमले और चालिस से अधिक भारतीय सुरक्षाकर्मियों मौत ने भी लोगों को एकतरह से आतंकित और आक्रोशित कर दिया था । उसके प्रतिवाद में लाईन अफ कन्ट्रोल पार कर पाकिस्तान अधिकृत वालकोट में की गयी विवादास्पद सैनिक कार्यवाही ने लोगों का ध्यान खिंच लिया था । जिस के कारण बाकी मुद्दों की अहमियत निस्तेज हो गयी थी । जिसका भरपूर लाभ भाजपा को मिला ।


 भारत के कई राजनीतिक विष्लेशकों का मानना है कि सन् २०१४ में जनता के आगे किये गये वायदों पर मोदी सरकार बिते पाँचसालों में संतोषजनक काम करने में असफल रही ।


 काले धन को विदेशों के बैंकों से ला कर प्रत्येक भारतीय के खाते में पन्द्रह लाख डाल देनेवाले लुभावने वायदे भी जुम्ले सावित हो चुके थे । तेरह हजार किसानों को कर्ज के बोझ के चलते इसबीच खुदकशी करनी पडी थी । नोटबंदी ने नीचले तबके के लोगों को सदमे में डालदिया था।  महँगाई लगातार बढ रही थी । गो हत्या के आरोप में लागों को कई जगह गैरन्यायिक तौर से मौत के घाट उतार दिया गया था । सरकार के प्रति आलोचक लोगों को पाकिस्तान चले जाने की धमकी दी जाती थी । ऐसे कुछ लोगों को गोली मारकर हत्या तक कर दी गई थी । गौरी लंकेश, पान्सरे, डाभोल्कर जैसे प्रतिष्ठित लोगों इस के मिशाल थे ।  बिते पांच सालों के  इन असफलता के बावजुद भी भारत की जनता ने भाजपा और उसके नेता मोदी को ही जितका केसरिया  सेहरा पहना दिया ।

जनता के सामने नरेन्द्र मोदी के समान भरोसा करने लायक कोई दुसरा चेहेरा इस समय भारतीय राजनीति में दूर दूर तक कहीं था भी नहीं । नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व भी जित के लिए काफी प्रभावकारी सिद्ध हो गया । उनकी सादगी और गतिशीलता ने भी लोगों के मन को आकर्षित किया । सच कहें तो यह जित भाजपा जित से कहीं अधिक नरेन्द्र मोदी की जित थी । विपक्षी राजनीति भी इतने सारे टुकडों में बँटी थी कि वह संयुक्त होकर भाजपा को टक्कर देने के लिए बहुत कमजोर पड गयी थी । कांग्रेस की हालात बहुत कमजोर थी ही क्षेत्रिय दलों की प्रवृती केन्द्र को टक्कर दे पाने की मनोदशा में कभी नहीं रही । जिस के चलते भाजपा को जित के लिए रोकना किसी के बश की बात नहीं थी ।


धर्म निरपेक्षता से हट कर हिन्दुत्व के राह पर चलने का भाजपा का संकेत भारतीय समाज के लिए  आनेवाले दिन कुछ असहजता भरे होने की आशंकाएं की जारही है । उन आशंकाओं को दूर करने की जिम्मेदारी भी अब भारतीय जनता ने नरेन्द्र मोदी के ही कन्धे पर डाल दिया है ।         

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