भयानक बाढ की संभावना है : समय रहते संभलने की जरुरत


बाढ जैसे प्राकृतिक विपदाओं को पुरा निषेध नहीं किया जा सकता परन्तु नुक्सानी को जरुर कम किया जा सकेगा ।


 
हिमालय से निकल कर दक्षिण की ओर बहनेवाली अधिकांश नदियाँ नेपाल से आकर भारत की गंगा नदी में मिलती हैं और बंगलादेश होते हुये बंगाल की खाडी में जा गिरतीं है । बरसात के समय इन नदियों में आनेवाली बाढ से सालना कई जानें चली जाती हैं और आर्थिक रुपसे काफी बडी नुक्सानी उठानी पड रही है । सदा की भाँती इससाल भी बाढ का कहर नेपाल, भारत और बंगलादेश में टुट पडा । जब नदियों में बाढ आती है मानवीय और धनमाल की क्षती हो जाती है तब हाय तौबा मच जाता है । लोगों की चीत्कार सुनाई देती है । उद्धार की अफरातफरी चलती है । वहाँ मानवीय संवेदनाओं की वजाय वोटों का सियासी प्रेत का साया घुमता नजर आता है । फिर कुछ ही दिनों में घाव भरे ना भरे, सालाना चलनेवाली सेड्यूल की भाँती इस आपदा को भुला दिया जाता है ।


              भारत ने तो नेपाल के शरहद के पास कई 
              संरचनाएँ बना रखे हैं जिससे नेपाल की
              तरफ की खेती योग्य जमीन डुब गयी है 
                 पानी का जमावडा बन गया है ।

हिन्दु पुराणो में मनु के समय में जलप्रलय का उल्लेख है । मनुओं की संख्या एक से अधिक होने के कारण ये कौन से मनु थे और यह कब घटित हुआ था, मीथक से बाहार यकिन नहीं कहा जा सकता है । बाईबल में भी नूह का नाम ऐसे ही सन्दर्भ में उल्लेख है । लगता है, एक ही तरह की लगनेवाले ये दो पात्र और परिस्थिति दो नहीं वल्कि एक ही है । इन दो मीथकों से पता चलता है, मानव जाती बाढ जैसे विपदाओं से हजारों सालों जानकार रहा है ।

बाढ के चपेट में सबसे अधिक कृषि क्षेत्र में पडता है । लाखों हेक्टर जमीन का फसल बाढ में नष्ट हो जाता है । उस में भी धान की खेती पर अधिक असर पडता है । कई बस्तियाँ डुब जातीं है । जाहिर है, इस असर का सिधा मार किसनों पर पडता है । तीनों देशों के इन क्षेत्र में गरीब किसान ही गुजर बसर करते हैं । बाढ में अक्सर नदियाँ रास्ते बदली है जिससे उर्वर जमीन रेत में तब्दिल हो जातीं हैं । इस नियती के कारण किसान अपनी जमीन से भी बेदखल हो जाते हैं । बाढ के बाद कई तरह की बिमारियों का प्रकोप अलग से इन किसानों को ही झेलना पडता है । इतनी बडी नोक्सानी की ओर गम्भिरता से सोचा ही नहीं गया है ।

दुनियाँ में बढते तापमान का असर हिमालय पर तीव्र गती से पड रहा है । जिसके चलते हिमालय में जमीं बर्फ तेजी से पिघल रहा है । वहाँ के कई हिमताल फटने के कगार पर हैं । ये फटते हैं तो बगैर बारिश के ही नदियों में भयानक बाढ आ सकता है । दुसरी बात बढते तापक्रम के कारण हिमालय में बर्फ के रुप में पानी को भंडारण करने की क्षमता का ह्रास हो जायेगा । नतिजा यह हो जायेगा कि बारिश जब होगी तब समूचा पानी बर्फ बनने के वजाये नदियों में बह आयेगी और नदी के नीचले भाग में बाढ का ताण्डव होगा ।  पिछले कुछ दशकों से मौसम के मिजाज में भारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं । बेसमय भारी बारिश, सुख्खा, ज्यादा गर्मी, ज्यादा ठण्ड को लोग इस समय ही झेलते आ रहे हैं ।  मतलव नेपाल भारत और बांगलादेश आनेवाले दिनों में भयानक बाढों के जोखिम में है । 




                
नेपाल भारत और बंगलादेश में बाढ नियन्त्रण के नाम पर खरबों की धन राशी खर्च किया जा चुका है । यह धन राशी लम्बे समय की योजना के तहत नहीं खर्च नहीं किया जा रहा है । नदियों में तटबन्ध बनाना ही इसका एक मात्र निदान नहीं हो सकता । जब बाढ आ जाता है तब पीडितों की पीडा पर वाटों का घीनौना खेल शुरु हो जाता है । राहत तक राजनीतिक संलग्नता के आधार पर होता देखा गया है ।

नदियों में आवश्यक स्थानों पर तटबन्ध बनाए ही नहीं गये हैं । जो बने हैं वो भी जीर्ण पडे हैं । भारत ने तो नेपाल के शरहद के पास कई संरचनाएँ बना रखे हैं जिससे नेपाल की तरफ की खेती योग्य जमीन डुब गयी है पानी का जमावडा बन गया है । नेपाल में इस के लिए भारत के प्रति बडा असंतोष देखने को मिलता है । ऐसी संरचनाएँ अनियन्त्रित बाढ से टुटने की संभावना सबसे अधिक होता है । ये भारत के लिए भी खतरे की घंटी हैं । नेपाल में कई स्थान में तटबन्ध बनाए ही नहीं गये हैं जो बने हैं वो भी जीर्ण हैं ।

नेपाल की पहाडियों पर भूक्षय का प्रकोप भयावह है । जिसको रोकने के लिए वनों का संम्रक्षण सहायक हो सकता है । उस पर उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है । अब नदियों में बडे बाँध बनाकर विकास का ख्वाब देखना भूकम्प की उच्च जोखिमवाले हिमालय के आसपास घातक हो सकता है । नदियों में बँधे बाध को फटजाने से लाओस में जो तबाही मची थी उससे शिक्षा लेना उचित है । ऐसे जोखिमों के वजाये नदियों को प्राकृतिक वहाव में ही व्यवस्थित करना सबसे उत्तम विकल्प हो सकता है ।

भूस्खलन को रोकने के लिए पहाडों में वृक्षारोपण और बरसाती पानी का उचित निष्काशन के लिए काम करना आवश्यक है । मैदानी क्षेत्रों में नदी को उसके प्राकृतिक स्वरुप को बनाये रखने के लिए काम करना, उससे भी अनियन्त्रित पानी को व्यवस्थित करने के लिए एक व उससे अधिक घेरे में अलग अलग उपतटबन्ध और नहर को बनाया जा सकता है । इन क्षेत्रों के लागों को बाढ से सूरक्षित स्थान में एकिकृत आवास बनाकर रखना सर्वथा उचित होगा । नदियों के आसपास दूर दूर तक जडें फैलनेवाले पेड पौधों को लगाना उचित रहेगा ।

क्या नेपाल भारत और बंलगलादेश मिलकर काम कर सकेंगे ? या फिर गन्दी राजनीति और कुटनीति का खेल में ही रमना चाहेंगे ? बात सोचनीय है ।   

टिप्पणियाँ

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