जम्मु कस्मीर को अब दहशत से आजादी मिलेगी ?
प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मु कस्मीर को प्राप्त विशेष संवैधानिक प्रावधान को हटाये जाने के पक्ष को रखते हुये जनता को संबोधन किये हैं । आम भारतीय को आश्वस्त करने के लिए यह उनके लिए आवश्यक था । अब उनके सामने अन्तरराष्टीय जगत को आश्वस्त भी करना जरुरी है । वैसे अबतक पाकिस्तान को छोडकर भारत के प्रति बाहरी शक्तियों का कोई बडा कठोर प्रतिक्रिया सामने नहीं आया है । फिर भी बहुत तरल बनी हुई है ।
की संसद ने खारिज कर दिया है । सरकार ने तकरीबन सत्तर साल से चली आ रही इस संवैधानिक प्रावधान को हटाने का प्रस्ताव संसद में रखा था और संसद ने बहुमत से रजामंदी दे दी । संविधान में कस्मीर को विशेष दरजा दिलानेवाले धारा ३७० निरस्त हो गया है । इसके साथ धारा ३५ ए भी खारिज हो गया है । दुसरी ओर लद्दाख को जम्मु कस्मीर से विभाजन कर दिया गया है और उसे केन्द्र शासित राज्य का दरजा देने की बात कही गयी है । वैसे कुछ लोग इस पर कानुनी बहस होने की संभावनाएँ देखते हैं ।
जम्मु कस्मीर में निर्वाचित विधानसभा होगा परन्तु लद्दाख में सिधे केन्द्र से शासन किया जायेगा । वहाँ निर्वाचित एसेम्बली नहीं होगा । फिलहाल जम्मु कस्मीर पर भी केन्द्र से सिधे शासन की व्यवस्था की गई है । बडी तादाद में सुरक्षाकर्मियों को अमन कायम रखने के लिए भेजा गया है । टेलिफोन और इन्टरनेट को बन्द कर दिया गया है । जम्मु कस्मीर का सम्पर्क बाँकी दुनिया से कटा हुआ है । जम्मु कस्मीर के राजनीतिक नेता उमर अब्दुल्ला और मेहबुबा मुफ्ती को नजरबन्द में रखा गया है और कईयों को गिरफ्तार किया गया है । वहां अभी अन्यौलता का माहौल है । बाहर से गये आम लोगों अफरातफरी में वापस हो रहे हैं । जन्नत के नाम से परिचित कस्मिर में धारा १४४ लगाया गया है । सभी बाजार सुनसान पडे हैं । शुक्रवार को कुछ जगहों पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन के समाचार हैं ।
इतिहास के झरोखों से
प्राचीन और मध्यकाल में कस्मीर में गैरवैदीक आर्येां का
आगमन हुआ और बाद में बौद्धों और हिन्दुओं का प्रभाव रहा । तीसरी सदी में
मगध के यशस्वी राजा आशोक ने भी अपने राज्य को यहाँतक पहुँचाया था कुषाणकाल
में बौद्धों का प्रभाव उत्कर्ष पर था । कस्मीर शैव दर्शन का प्रमुख केन्द्र
रहा । वहा के सोमानन्द जैसे शैव दर्शन के उद्भट विद्वान का उल्लेख कई
शास्त्रों में मिलता है । छठी शताब्दी में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने
भी कस्मीर पर राज्य किया । बाह्रवी सदी में कल्याण ने यहीं राजतरंगिणी लिखा
। जिसे इतिहास माना गया है । किंवदन्तियों के अनुशार ईसामसीह और हजरत
मोहम्मद जैसे महात्माओं ने भी अपने समय में कस्मीर आकर ज्ञान साधना की थी ।
चौदहवीं सदी के प्रारम्भ में सुफी सन्तों आगमन हुआ उसके बाद कस्मीर में
मुसलमानों की आवादी बढी ।
भारत के बाँकी हिस्से में सरकार के इस कदमका प्रसंसा भी हो रहा है । हिन्दु आवादीवाले जम्मु में भी इस कदम के प्रति लोग संतोष व्यक्त करते दिखाइ दे रहे हैं । मुश्लिम आवादीबाले कस्मीर के लोग इस सरकारी कदम को विश्वासघात बताते दिखते हैं । विपक्षी दलों में भी इस मसले को लेकर एकमत नहीं है । भारतीय जनतापार्टी लम्बे अरसे से धारा ३७० का विरोध करती आरही थी । यह तय था कि भाजपा की सरकार समय मिलते ही यह कदम उठाएगी । भारत का आरोप है कि कस्मीर की मुश्लिम आवादी को जरिया बनाकर पाकिस्तान भारत में आतकवादियों को सह देता आ रहा है । दुसरा तर्क यह भी है कि विशेष दरजे ने कश्मिरको अविकसित रहने को मजबुर कर दिया है । कुछ लोग सरकार के इस कदम से हिन्दु मुस्लीम के बीच मनमुटाव बढ्ने के संकेत देख रहे है।
कस्मीर सन् १९४७ तक अंग्रजों द्वारा संरक्षित राज्य था । वहाँ के राजा हरि सिंह भारत के आजादी के बाद की विभाजन में भी कश्मीर देश की अस्तित्व को बरकरार रखना चाहते थे । भारत पाक विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों इस राज्य को अपने में मिला लेना चाहते थे । परन्तु सन् १९४७ अक्टोवर में पाकिस्तानी सेना और पठानों ने कस्मीर को अपने हिस्से में करने के लिए आक्रमण किया । तब कस्मीर नरेश हरि सिंह ने भारत को सहयोग के लिए गुहार लगाई । उन्होने कुछ शर्तों के साथ भारत के अधिन रहने की राजामन्दी दी । इन्ही शर्तो कारण आजतक जम्मु कस्मीर भारत के अन्दर विशेष दरजे का उपयोग करता रहा था । जिसे बाद में संविधान में किसी न किसी रुपमें शामिल किया गया । भारतीय सेना ने कस्मीर पहुँच कर पाकिस्तानी सेना और कबीलाई पठानों को पिछे हटने को मजबूर किया । १३ अगस्त १९४८ में संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वबधान में युद्धविराम संभव हुआ । १३ जुलाई १९७२ को भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला सम्झौता सम्पन्न हुआ । युद्धविराम रेखा को नियन्त्रित रेखा में बदलने का प्रावधान भी इसी सम्झौते ने किया । भारतीय सेना के अधिनस्थ कस्मीरी भूभाग भारत नियन्त्रित और पाकिस्तानी सेनाओं के अधिनस्थ भूभाग पाकिस्तान नियन्त्रित हो गया । कस्मीर अपने आजाद अस्तित्व को खो कर दो भागों में बँट गया । हाल ही में गृहमंत्री अमीत शाह ने संसद में चीन के अधिन की अक्साई चीन को भी जम्मु कस्मीर का हिस्सा बताया था । अगर यह सच है तो जम्मु कस्मीर के तीन टुकडे हो गये हैं । संयुक्त राष्ट्रसंघ ने विवाद को समाधान कराने के लिए जनमतसंग्रह की बात की थी — जो कभी संभव नहीं बना । यह प्रस्ताव अकेले भारत नियन्त्रित कस्मीर के लिये ही नहीं पाक नियन्त्रित क्षेत्र के लिये भी था ।
शान्त हिमालय के इन वादियों में अशान्ति का लम्बा दौर चलता आ रहा है । भारत सरकार के नये कदम से अशान्ति में कुछ सुधार हो पायेगा, यकिन करना मुश्किल है । पाकिस्तान अपने कडे रुख के साथ प्रस्तुत हो रहा है । उसने भारत के साथ कुटनीतिक और व्यापारिक संबन्धों को तोडने का फैसला ले चुका है । वह शिमला सम्झौते और संयुक्त राष्ट्रसंघ के पुराने निष्कर्श की बातों पर जोर डालना चाहता है । चीन और पाकिस्तान के अच्छे सम्बन्ध और अफगान शान्ति वार्ता के बहाने अमरीका के पाकिस्तान के बीच बढती नजदीकियाँ जम्मु कस्मीर के बदलते हालातों पर कहीं न कहीं प्रभावित करने की संभावना है । चीन ने लद्दाख पर अपनी ओर से नाखुशी जताते हुये समस्या के साधान के लिए दोपक्षिय शिमला संझौते बात कर रहा है । अमरीका और राष्ट्रसंघ भी शिमला सम्झौते का जिक्र कर रहे हैं । इसका मतलब पाकिस्तान को मसले पर जोडना ही है । भारत पाकिस्तान के साथ इस मसले पर बातचीत से साफ इन्कार करने के मुड में है । भारतका दावा है कि जम्मु कस्मीर का मसला उसका नितान्त अन्दरुनी मामला है । इस अन्यौलता को तोडने के लिए प्रभावकारी कुटनीति के साथसाथ अपनी आवाम को आश्वस्त करना जरुरी है ।
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