पूर्वोत्तर भारत में नागरीकता विधेयक पर भारी विरोध

 भारत मे सरकार के नागरीकता कानुन संशोधन के विरोध मे पूर्वोत्तर भारत में भारी विरोध हो रहा  है। NRC के विफलता के बाद संसद के पटल मे पेस यह संशोधन ने लोगों को आक्रोशित कर दिया है।   

पिछले कुछ सालों से असम और उसके आसपास के राज्यों में संशय के काले बादल छाये हुये हैं । ब्रम्हपूत्र के वादियों में पला बढा हुआ हुँ । इसलिए मेरी भावनाओं में वहाँ की हरियाली बरकरार है । लोहित के किनारे रेत के घरौंदे बनाते बनाते मैने बहुत कुछ सिखा है बाकी जिन्दगी के लिए । मेरा जी चाहता है कि वहाँ पर सब कुछ ठिक चले । जिस के लिए वहाँ की हालातों के जानने के लिए जी मचलता है ।

सुबह जब घर से बाहर निकलता हुँ तो हरि काका चबूतरे पर बैठे मिलते है । मुझे देखते ही वे असमिया बोली में पुछ ही डालते है कि उधर की खबर क्या है । उनके इस प्रश्न से मेरी संवेदनाओं में बसा भारत का असम दैनिक रुपसे सजीव हो उठता है । कल सुबह की ही तो बात है, काका ने कुछ अलग ही अन्दाज में कहा — बेटे सुनते हैं कि मोदी के राज असम में मोदी के ही खिलाफ लोग आन्दोलन करने लगे हैं ? उनके झुर्रिदार चेहेरे पर मैने चिन्ता भाव देखा । वो भी चाहते थे कि असम सदैव खुशहाल ही रहे ।

इसबार भारत सरकार ने नागरिकता कानुन संशोधन के लिए संसद में विधेय प्रस्तुत किया है । विपक्ष के विरोध के बाद लोकसभा में सत्तापक्ष के बहुमत के कारण विधेयक पास हो चुका है । राज्यसभा में भी इसे हरी झण्डी मिलने की संभावना है । कस्मीर से घारा ३७० हटाने और अयोध्या में राममन्दिर बनाने के मसले की तात्कालिक सफलता के बाद उत्साहित सरकार नागरिकता कानुन संशोधन पास कराने में लगी है । इस विधेयक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांगलादेश के अल्पसंख्यक धार्मिक विभेद से पिडित हिन्दु, बौद्ध, जैन, शिख, पारसी और ईशाई लोगों को भारत में नागरिकता दिये जाने प्रस्ताव है । भारत का संविधान धर्म का पक्षपात को अस्वीकार करता है । मुसलमानों को इस प्रस्ताव में शामिल नहीं किया गया है । परापूर्वकाल से ही भारत विभिन्न जाति, सम्प्रदाय और धर्मो का पनाहगार रहा है । भारतीय संस्कृती में इसका अनुभव किया जा सकता है । नागरीकता देने के शर्तों में धर्म का रखना धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन माननेवालों की कमि नहीं है । अगर धर्म को छोडकर उत्पिडन को शर्त मानाजाता तों और उचित होने की संभावना थी । चबुतरे से उठकर हरि काका बोले— हिन्दुओं को भारत और नेपाल संम्रक्षण नहीं करेंगे तो और कौन करेगा । औरों को नहीं होना चाहिए । वे बोले और चलते बने । मैं उनको नजरों से गायब होने तक देखता ही रहा । उनका हिन्दुत्व उबल गया था । उन्होने असम के वारे में आगे कुछ भी नहीं पुछा ।

समग्र उत्तरपूर्वी भारत और अन्य राज्यों में भी विधेयक का विरोध हो रहा है । उन की माग है कि घुसपैठियों को धर्म के नाम पर रियायत नहीं मिलनी चाहिये । भाजपा पर हिन्दुवादी और ईश्लाम विरोधी का आरोप लगता रहा है । उस पर भारत को हिन्दुओं का देश बनाने के लिये मुहिम चलाने और हिन्दु राष्ट्रवाद की तरफदारी करने के संगीन आरोप भी लगे हैं । देश में गिरते आर्थिक आँकडे, बरोजगारी, महिला हिंसा जैसे अहम मुद्दों को दरकिनार कर जाती, धर्म जैसी संवेदनाओं में जिवित रहनेवाले मुद्दों को आगे बढाने के लिये सरकार को कोसनेवालों की कमि नहीं है । संसद में सरकार को बहुत बडी अडचन तो नहीं दिखाई देती परन्तु सडकों में सरकार कैसे निपटेगी यह कह पाना मुश्किल है । गृहमंत्री अमित शाह पूर्वोत्तर भारत को शाश्वस्त करने की प्रयास कर रहे है कि वहाँ पर कोई बुरा असर नहीं पडने दिया जायेगा । फिर भी विरोध के स्वर थमा नहीं है ।

 असम में पिछले तीन सालों से एनआरसी का खौफ चला । भोट देते हुये भी लाखों लोग संदिग्ध हो गये । जो दादा पर दादाओं की पीढी से असम में बसते आ रहे हैं वे ही घुसपैठिये करार दिये गये । बहुत लज्जा कि बात थी कि जिन्होने असम को ही अपना बसेरा ठान लिया था वे ही हाथ में प्रमाण कि कपियों को लेकर भारतीय नागरिक होने नहोने आशंकाओं के साथ दफ्तर के बाहर कतार में खडे थे । पहलीबार की एनआरसी में चालिस लाख लोगों को घुसपैठिये बताया गया था । दूसरे संशोधन में यह संख्या घटकर उन्निस लाख पर उतर आयी । उसमें भी तकरीबन चौदह लाख घुसपैठिये हिन्दु हैं । बाकी पाँचलाख लोगों में दो तीनलाख  अनुसंधान के बाद एनआरसी में सामिल हो ने की संभावना बतायी जाती है । बचे डेढ दो लाख ही घुसपैठिये की संचावना प्रबल है । असम के मोदी के नुमाइन्दे भी एनआरसी को असफल बता चुके है । खरबों रुपये और तीन साल गवाने के बाद यह पहाड खोद कर निकली चुहिया के बरावर था ।           

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