दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल की फिर से भारी जित का मतलब

अरबिन्द केजरिबाल की आम आदमी  पार्टी और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी कि भारतीय जनता पार्टी के बीच कोइ तुलना की ही नही जा सकता फिर भी दिल्ली की चुनाव मे भाजपा की दुसरीबार करारी हार कई सवालों को जन्म देता है।

 दिल्ली के चुनाव में अरबिन्द केजरीवाल की आमआदमी पार्टी ने फिर से शानदार जित हासिल की है । दिल्ली विधानसभा के ७० सीटों में ६२ सीट आमआदमी पार्टी को मिले हैं तो भारतीय जनतापार्टी को ८ सीटें मिली । कयास तो था कि आमआदमी पार्टी ही बडी पार्टी बनेगी परन्तु भाजपा के साथ उसका फासला इतना बडा होगा — ऐसा नहीं लगता था । भाजपा को दिल्ली के पिछले चुनाव में से ५ सीटें अधिक मिली है । कद्दावर राष्ट्रिय नेताओ से भरा भाजपा की यह बढत बहुत ही अनपेक्षित है । कांग्रेस दिल्ली में खाता भी नही खोल सकी ।

लोकसभा चुनाव में जिस जनता ने भाजपा के पक्ष में मत दिया उसी जनता ने विधानसभा चुनाव में आमआदमी पार्टी के पक्ष में अपने को खडा किया । मतदाताओं का यह रुझान से पता चलता है कि वह आँख मुंदकर ईविएम का बटन नहीं दबाती । किसे कहाँ रखना है उसे अच्छी तरह परख सकती है । दिल्ली के चुनावी नतिजे ने राजनीतिक पार्टियो को अपने पारम्परिक वोट बैंक के पिछे भागने की पुराने तौर तरीके पर विचार करने को विवश कर दिया है । जनता के असली मुद्दों के बाहर रह कर चुनाव जितना भारत में शायद अब दलों को आसान नहीं होगा ।

इसबार के दिल्ली चुनाव के नतीजों से कहीं अधिक चुनावी प्रचार विवादास्पद  रहा । भाजपा आमआदमी पार्टी से कहीं अधिक आक्रमक ढंग से चुनावी प्रचार में उतरी परन्तु वह इससे फायदे बटोरने में नाकामयाब रही । भाजपा के कार्यकर्ता भी उतने प्रशिक्षित नहीं पाये गये । दिल्ली चुनाव को भारत पाकिस्तान के मैच से तुलना करना और गोली मार देने जैसे विवादास्पद बयान देने के कारण आक्रमक प्रचार स्वयं निस्तेज हो गया । आम आदमी पार्टी को भाजपा के कुछ नेता आतंककारी तक कहने को बाज नहीं आये । अन्य राज्यों के दश भाजपाई मुख्यमंत्रियो को भी चुनाव प्रचार करने के लिये दिल्ली लाया गया । ये लोग भी भाजपा की नैया को पार नहीं करा पाये । मुुलधार की मिडिया की भाजपा के पक्ष में उबाउ प्रचारबाजी ने भी भाजपा के प्रति दिल्ली के लोग आकर्षण के बजाये विकर्षण के चपेट में आ गये । शाहिनबाग में नागरीकता संशोधन कानुन के खिलाफ चल रहे धरने को आवश्यकता से अधिक निशाने पर रखने के कारण भी भाजपा की चुनावी जमिन कमजोर पड गई । जाति धर्म जैसे भावनात्मक मुद्दों का दीर्घकाल तक इस्तेमाल करने की सोच नुक्सानदेह भी हो सकता है । दिल्ली के चुनावी नतिजों की सिख यही लगता है । आनेवाले चुनावों में भाजपा को अपनी इन कमजोरियों के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है ।

भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले आम आदमी पार्टी बहुत ही संयमित थी । उसके पास कोई राष्ट्रिय मुद्दा नहीं था जिसे वह भजा सके । आमआदमी पार्टी की संयमित होने से भाजपा की सुझबुझ विहिन आक्रमकता लगभग निस्तेज हो गया । आमआदमी पार्टी ने विल्कुल दिल्ली की जनता के करीबी मुद्दों के बल पर ही चुनाव लडा । लोगों की शिक्षा, स्वस्थ्य, बिजली, पानी जैसे मुद्दों की बात की । बिते समय में आमआदमी पार्टी द्वारा किये गये काम भी दिल्लीवासी को केजरीवाल पर विश्वास करने का कारण बना । दिल्ली के एक विषेश वर्ग में मुफ्त में पानी बिजली, शिक्षा और स्वस्थ्य जैसे मुद्दों का अच्छा असर पडा । ऐसे पपुलिष्ट कार्यक्रम राज्य की आर्थिक जीवन में दुरगामी नकारात्मक असरवाले भी हो सकते हैं । अगर आमआदमी पार्टी इन सुविधाओं को बरकरार रखते हुये दिल्ली का विकास भी कर सकती है तो सोने पे सुहागा हो सकता है । देखना यही है कि आनेवाले दिनों में आमआदमी पार्टी किस कदर दिल्लीवासी का भरोसा बनाये रखने में कामयाब होते हैं ।                                 

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