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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नेकपाको सम्भावित वियोगान्त कथा !

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सत्तारुढ नेकपा मा सरकारले भारत विरुद्ध नयाँ नक्शा जारी गरे लगतै उचाईमा पुगेको विवाद ले निक्कै उतार चढाव पार गर्दै आएको छ । आजसम्म आईपुग्दा यो झण्डै वारपारको अवस्थामा पुगेको अड्कल काट्न थालिएको छ । बाहिरबाट हेर्दा, यतिबेला नेकपाको टुप्पोमा मेलो न मेसो जस्तो देखिने विवाद चलेको छ । एकजना मुली नेताले अर्को मुली नेतासंग पार्टी अध्यक्ष र प्रधानमंत्रीको पद दुवैबाट राजिनामा मागे पछि यो झगडा सतहमा आएको छ । भनिन्छ प्रधानमंत्रीले एकलौटी सत्तालाई प्रयोग गरेकोले यो अवस्था उत्पन्न भएको भन्ने तर्कहरु सुनिएका छन् भने पद बाँडफाँड नमिलेर विवाद झिकिएको भन्ने तर्क पनि चर्कोसंग उठेको छ । ल पार्टी फुट्यो फुट्यो ... जुट्यो जुट्यो..भनेर निराश हुने रमाउनेहरुको धेरै विजोग छ, अचेल । निराश हुँदा निस्किएको आँसु पुछ्न नपाऊदै किंचित खुशी हुने खबर आएर हाँस्नु पर्ने जस्ता घंण्टैपछि आउने स्थितिको मारमा परेका छन् बिचराहरु । नहुन पनि कसरी, त्यो पार्टीका एउटा अध्यक्ष एक स्थानमा गएर एउटा कुरो गर्छन् र अर्को, अर्को स्थानबाट अर्को कुरा बोलेर चारैतिर दुविधा छर्ने गर्छन् ।  एउटा पार्टीका दुई मुख्य थुतुनाहरुका स्वरमा अरु दु...

ओली की अयोध्या और अन्तकरण की बात

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हिन्दू ओं की पौराणिकता ग्रन्थों पर आधारित हैं । यह विरासत आज भी विश्वास के बल पर बलिष्ट है । यह सत्य है कि स्थान, पात्र और समय के लिहाज से बहुत कुछ प्रमाणित होना बाँकी है । अगर ऐसा हो भी जाता है तब पौराणिकता इतिहास में बदल जायेगा । नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने फिर एकबार वर्तमान अयोध्या को नकली बताकर नयाँ हंगामा खडा कर दिया । इससे बढकर उन्होने यहाँ तक कहा कि अयोध्या वर्तमान नेपाल के शरहद के अन्दर ही है । ओली महोदय को हलकी फुलकी बातों को लेकर चरचे पर आने का चस्का लगा ही रहता है । सो इसबार भी दिखा । इस समय देश में बाढ और भूस्खलन का मातम चल रहा है और दक्षिणी सिमा पर नेपाली लोग अपनी जमिन को भारत की ओर से छिने या डुबोये जाने की पीडा का बयान कर रहे हैं फिर भी ओलीजी अयोध्या के मसले पर कुद पडे हैं । जैसे कि इसे तत्काल निबटाने की आवश्यकता है । कुछ दिन पहले एक मित्र ने फोन पर कहा था कि, ओली शायद किस समय, किस जगह, किन बातों को कहना है खयाल नहीं रख पाते हैं । बस बोल ही देते हैं ।  उनको नजदीक से जननेवालों का कहना है कि वह अपने नापसन्दों पर बजह बेबजह जहरिले साँप की भाँती कभी पिछा नहीं छो...

भारत नेपाल सिमा विवाद में मिडिया पर उठा सवाल

क्या अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की कोई सिमा नहीं होती है ? पत्रकारिता से तो विश्वव्यापि मान्यता के आधार पर चलने की आपेक्षा की जाती है । इनदिनों भारत और नेपाल के बीच कालापानी लिपुलेक लिम्पियाधुरा के स्वामित्व को लेकर चले विवाद के कारण तनाव चल रहा है । अक्सर ऐसा कहा जाता रहा है कि भारत के आजादी के बाद दोनों देशों के बीच पहले सुवर्णकालिन सम्बन्ध रहे थे और आज आकर ही इस में खराबी आई है । हकिकत में ऐसा नहीं है । दोनों देशों के बीच आम लोगों के आध्यात्मिक और साँस्कृतिक सम्बन्ध आपस में सदा से गहरे रहे हैं लेकिन राजनीतिक सम्बन्ध उतार चढावपूर्ण चल रहे हैं । आज का तनाव भी उसी का एक नवीनतम एपिसोड मात्र है ।  नेपाल सन् २०१५ को छोडकर १९७० और १९८९ में भी भारतीय नाकेबन्दी को झेल चुका है । पुरे तौर पर भारत पर आश्रित नेपाल पर क्या बिता था, नेपाल की तीन पीढियाँ ही बता सकती है । आज की ही तरह तब भी सिमा की समस्याऐं थी । चीनद्वारा तिब्बत पर अधिकार और भारतद्वारा सिक्कीम पर अधिकार और पाकिस्तान के विभाजित कर देने के बाद इन दो बडे पडोसियों के  प्रति बीच में अवस्थित छोटा देश नेपाल आशंका के लम्बे दौर स...

नेपालमा सरकार ढाल्न र जोगाउन भारत र चीनको चलखेल तीव्र !

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चिनिया राजदूत हो याङकी को सत्तारुढ नेकपा भित्रको विवाद मिलाउन पटकपटक चलेको दौडधूपले नेपाली राजनीतिक दलहरुको क्षमताप्रति निराशा उत्पन्न भएको छ । एउटा भारतीय पत्रिकाका अनुशार नेपालमा भारतीय खुफिया चलखेल बढेपछि त्यसको काउण्टर गर्न चीनले सक्रियता बढाएको भन्ने देखिन्छ ।                        कोरोना संक्रमण र देशमा देखिएको आर्थिक संकट जस्ता गम्भिर विषयलाई वेवास्ता गर्दै नेकपामा हालै चलिरहेको आन्तरिक गुट संघर्षमा प्रधानमंत्री केपी ओलीलाई राजिनामा दिन दबाव बढिरहेको बेला नेपालस्थित चिनिया राजदूत हो याङकीले त्यस पार्टीका नेताहरुलाई भेट्ने क्रम तीव्र बनाएपछि चारैतिर आशंका फैलिएको छ । गत बैशाखमा पनि नेकपामा चलेको विवादको बेला राजदूत याङकीले यस्तै सक्रियता बढाएपछि विवाद साम्य भए झैं देखिएको थियो । बाहिर देखिएको परिदृश्य यस्तो भएपनि पर्दाभित्र आफ्नो चरीत्र अनुशारको गतिविधि भारतले काठमाण्डौको राजनीतिक वृत्तमा सिमा विवादवारे राजनीतिक स्तरमा वार्तालाई प्राथमिकता दिनु भन्दा यहाँका नेताहरुका कान फु...

भारत चीन सिमा तनाव से हिमालय पर आतंकका साया

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भारत चीन सिमा में चल रहे तनाव का निराकरण युद्ध से कदापि नहीं पाया जा सकता । इसके लिये दोनों पक्ष को वार्ता के लिए इमानदार प्रयास करना चाहिये । शीतल, शान्त, विशाल हिमालय औ र उसके आसपास खुनी संघर्ष का डरावना आतंक दौर दशकों से चल रहा है । इन दिनों यह आतंक और गहराता दिखाई देने लगा है । बौद्धों, किरातों, हिन्दुओ और जैनोंं के लिये हिमालय धार्मिक आस्था का धरोहर रहा है । हिमालय पर्वत के आसपास मौजुद विशाल जलक्षेत्र को देखते हुये आश्चर्य लगता है । इसी आश्चर्य को प्रकृति से बढकर दैवी माननेवाले करोडों लोगों की आबादी इस क्षेत्र में हैं । दक्षिण की ओर बहनेवाली कई बडी नदियों की उत्पती हिमालय से ही होती है । जिन के सहारे शदियों से कई मानव सभ्यताओं का विकास हुवा । हिमालय का शान्त, पावन और मनोरम छठा पर अब तोप टैंक, मिशाईल और युद्धक विमानों की कर्कश आवाज सुनाई देने लगीं है । वहाँ की पावन धरती पर अब अधिकार जमाने की होड सी लगी है । इन दिनों लद्दाख क्षेत्र में चीन और भारत के बीच तनातनी चल रही है । गलवान घाटी में जून १५ तारीख को दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झडपों में २० भारतीय सैनिको की जानें गयी । ची...