भारत नेपाल को केवल सुरक्षा नजरिये देखता है ?

नेपाल और भारत के बीच और कइ मुद्दों के अलावा सीमा विवाद पिछले साल से अहम मुद्दा बन गया है । जिसे भारत राजनीतिक रुप से तबज्जो नहीं दे रहा है । नेपाल पर दशकों से चीन , अमरिका और युरोपियाइ ताकतों की पैनी नाजर है । क्या भारत नेपाल के साथ समस्याओ को समाधान के लिए राजनैतिक रास्ता नहीं चाहता है ?                                                                                                                                                                                                                                                                                        भारतीय सेना प्रमुख एम नरवने नाेवेम्वर के दुसरे सप्ताह औपचारिक दौरे पर नेपाल आने कि  तैयारी में हैं । इस कि पुष्टि दोनों ओर से लगभग हो गई हैं ।  सम्भवत: इस यात्रा की पूर्व तयारी के लिये खुुुफिया एजेन्सी र के प्रमुख समान्त गोयल अन्य अधिकारी के साथ दशहरा के चार दिन पहले दोनों देशों के बीच तकरीबन साल भर से तनाव में चल रहे सम्बन्धाें में सुधार के नाम पर काठमाण्डु आकर उच्चस्तरीय मुलाकात  के बाद लाैट चुके हैं । प्रधानमन्त्री के दफ्तर ने भी कि पुष्टि की है । इस मुलाकात पर भी नेपाल मे लोगो का भारी सन्शय देखा जारहा है । भारतीय समाचाराे मे खुफिया प्रमुख का अन्य कुछ राजनीतिक नेताओ के साथ मुलाकात का जिक्र किया गया है । परन्तु प्रधानमन्त्री कार्यालय के अलावा किसी ने अबतक मुह नही खोला है । इस माहोल मे यह भी कयास लगाया जा रहा है कि सेनापति  आने के बाद भारत के इशारे पर पुराने ही तरीके से नेपाल मे विषेश बदलाव हाे सकतेे है ।  सन 2015 के पहले इसी तरह नेपाल मे परिवर्तन होते रहे है । जिसके चलते भारत पर हस्तक्षेप का आरोप लगता रहा है ।                                                                                                                                                                                                                                            इसतरह अब भी खुफिया प्रमुख और सेना आगे कर भारत राजनीतिक नही वल्की सुरक्षा शंयन्त्रों के जरिये से ही नेपाल नीति आगे बढाने कि मन्शा रख रहा प्रतीत हो रहा है ।  विगत मे नेपाल के प्रति इस नीति को मन्मोहन सिंह कि सरकार ने अपनाया था। विष्लेशको का मानना  है कि इसी नीति के कारण ही नेपाल और भारत के बीच दूरिया बढी ।

 

 दोनों देेेेशाें के बीच लम्बे समय चले आ रहे एक प्रचलन के मुतबिक नेपाली सेना का मानार्थ प्रमुख की पदवी धारण करने भारतिय सेना प्रमुख नरबने नेपाल  आने वाले है । उनके नेपाली समकक्षी नेपाल के सेना प्रमुख पूर्ण चन्द्र थापा साल पूर्व ही भारत में ईस मनार्थ पदवी से नवाजे जा चुके है । इस दौरे को लेकर नेपाल मे चरचे शुरु हो गये है ।  बताया जाता है कि नेपाली सेना प्रमुख ने नेपाल  के कुछ चुनिन्दे बुद्धिजीवियो से इस मसले पर सलाह मसविरा भी किये है ।

 

                                                                                  

गत साल से नेपाल और भारत के बीच सीमा को लेकर तीव्र विवाद सतह पर आया है । भारत ने जब पिछ्ले साल लीपुलेक को जोड्नेवाली सडक का उद्घाटन किया था तब नेपाल ने कडी आपत्ति जनाइ थी । इससे पहले जब भारत ने अपने सम्विधान से धारा 370 हटाने के पश्चात नक्शे के सन्शाेधन मे कालापानी क्षेत्र को अपने नक्से मे शामिल किया था तब भी नेपाल ने विरोध किया था । नेपाल दावा करता है  कि सडक उसके जमीन पर बनाया जा रहा है ।  तब सेना प्रमुख नरवने ने नेपाल के विरोध को चीन कि ओर लक्ष्यित करते हुये दुसरे का उक्सावा कहा था । उनका कथन प्रोटाेेकल के हिसाब से भी उचित नही  माना गया था , नेपाल के सन्दर्भ मे तो और भी गलत था । नेपाल मे कई लाेग मानने लगे है कि अब इस प्रचलन को खारेज कर देना चाहिये । तब उनके आपत्तिजनक बयान पर टिप्पणी करते हुये नेपाली सैनिक मुख्यालय ने समय आने पर उचित जवाफ देने कि प्रतिक्रिया दी थी । अब देखना यह है कि दोनो सेनापतियो के बीच क्या और कैसे बातचीत होती है । भारत  के साथ  पाकिस्तान और चीन के साथ चलरहे विवादो के साथ इस विवाद को कतई तुलना किया ही नही जा सकता है । उस विवादित जमिन पर सन 1962 से ही भारतीय सेना कि उपस्थिति है । इस तरह  उनका बाेलना नेपाल मे सैनिक धम्की के रुप मे देखा गया था ।  लेकिन बाद मे दुसरे अवसर पर इस विवाद पर कुछ नरम बयान दे कर बात काे ठन्डा करने का प्रयास किया भी था ।  यह भारत और चीन के बीच सिमा टकराव बढने सेे पहले की बात थी ।

 

 

वैसे लगता नही है कि अभी भी नेपाल मे उनके प्रति आक्रोश कम पड गया है ।   नरेन्द्र माेदी के सत्ता आने के वाद सरकार अपनी बात अपने निकट कि मिडिया से कहलवाती है । इस समय भारतीय मिडिया  यह दिखाने कि पुरजाेर कसरत मे है कि नेपाल ने कालापानी, लिम्पियाधुरा काे अपने नक्शे मे दिखा कर किये गये गलती काे मान चुका है ।  नेपाल के विदेश मन्त्रालय का एक सुत्र इस बात से साफ इन्कार करते हुये कहता है कि सीमा पर हमारे दावे सत्य और प्रमाणिक है जिस से पिछे हटने का सवाल पैदा ही नही हाेता ।

 

अक्टोबर के शुरु मे नरवाने विदेश सचिव हर्षबर्धन शृङ्गला को साथ लेकर म्यानमार  के दाे दिवसिय दाैरे पर जा चुके है । वहाँ  सुरक्षा और अन्य महत्वपूर्ण मसलेा पर सम्झौतेे किये गये है । स्मरण रहे , म्यानमार चीन के साथ भी नजदिकी  सम्बन्ध बनाये हुये है । इसी कडी मे उनके नेपाल भ्रमण को भी जोडकर देखा जा रहा है । इसका मक्सद दिल्ली के अनुसार चीन के कारण अपने पास पडाेस   मे गिरी साख काे फिर से वापस लाना है । हालिया दिनो मे भारतीय सुरक्षा तन्त्रो का नेपाल को लेकर सरगर्मी कुछ हैरत मे डाल देनेवाले है । चीन के खिलाफ इस क्षेत्र मे अपने लिए ही नही वल्की अमेरिकी नुमाइन्दे के रुप मे भी भारत काम कर रहा है । ताकतवर चीन को टक्कर देने के लिये यह उसकी  वाध्ययता भी है । पास पडाेस मे भारत की साख गिरने मे अकेला चीन कारण नही है वल्की स्वयं भारत की गलत नीतिया ही प्रमुख रुप से जिम्मेवार रही है ।  इस स्थिति मे भारत किस रास्ते से नेपाल व्यवस्थित कर पायेगा देखना बाकी है ।                                                                                  

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