हिमालय की गोद से क्यास्त्रो को सलाम




फिडेल क्यास्त्रो
जन्म १९२६‌        मृत्यु २०१६   


इसबार १३ अगस्त, फिडेल क्यास्त्रो के ९५वें जन्म वार्षिकी के  अवसर पर, सन् १९९१ में लिखित प्रकाश शर्मा संगम  की यह सुन्दर कविता श्रद्धांजली स्वरुप अर्पित है ।

                                                                                                                                                                                                                                                                           

कल्पना में देखता हूँ जब तुम्हारा

दुबला पतला और ऊँचा शरीर

मेरी नजर में तुम

और भी ऊँचे बन जाते हो

ऊँचे ..... बहुत ऊँचे ।

इस अनन्त आसमान से भी ऊँचे....

सिर्फ भूगोल की दूरी है तुम्हारे और मेरे दरमियान ।

चाह कर भी नहीं लाँघ सकता 

इस दूरी को । 

लेकिन, मेरे फिडेल... मेरे क्यास्त्रो 

कल्पना में मैं तुम्हें

हर रोज मिलता हूँ

अंकमाल करता हूँ 

और बारबार चुमता हूँ तुम्हें

मैं तुम्हें तुम्हारे गन्ने के खेतों में 

खिलखिलाते देखता हूँ 

युद्ध के मोरचे में 

तिल्मिलाते देखता हूँ

क्युबा के आकाश में 

झिल्मिलाते देखता हूँ ।

 क्युबाई जनता के रखवाले तुम 

साम्रज्यवाद के शत्रु तुम 

मेरे हिरो, मेरे कमरेड 

इस हिमालय की गोद से

तुम्हें लाल सलाम

                             तुम्हें सहश्र सलाम ।                           


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क्युबाई समाजवादी क्रांति के नायक क्यास्त्रो का पुरा नाम फिडेल ऐलेजैण्ड्रो क्यास्त्रो था । उनका जन्म १३ अगस्त १९२६ में क्युबा के एक गन्ने की खेती करनेवाले किसान के परीवार में हुवा था । उनके पिता स्पेन के आप्रवासी थे । क्यास्त्रो ने हवाना विश्वद्यिालय से कानुन की पढाई की और वकाल सिखने लगे । इसी दौरान वे राजनीति की ओर आकर्षित हो गये । वे क्युबा के अमेरीका परस्त शासकों को देश की बद्हाली के जिम्मेदार मानते थे । सन् १९४७ में उन्होंने एक असफल विद्रोह में हिस्सा लिया । सन् १९४८ में कोलम्बिया के बोगोटा में एक शहरी विद्रोह में शामिल हुये । इसी साल उन्होंने कुलीन परीवार की युवती मिरता डायज बलार्ट से शादी की । बाद में उनके साथ सम्बन्ध तनाव भरे रहे । सन् १९५० में वे पिपुल्स पार्टी के सदस्य बने । बाद में उन्होंने सत्ता के खिलाफ हथियारबन्द वगावत करने के लिए भूमिगत दस्ते का गठन किया । सन १९५३ में इस दस्ते ने मोंकाडा सैनिक बैरेकों में असफल हमला किया । क्यास्त्रो को गिरफ्तार किया गया और उनके कई साथी मारे गये । अदालत में अपनी सफाई में क्यास्त्रो ने कहा– इतिहास मुझे दोष नहीं देगा । उनका यह लम्बा बयान चर्चित है । उन्हे १५ साल की सजा मिली परन्तु १९५५ में वे रिहा हुये और म्यक्सिको चले गये । वहीं उनकी मुलाका चे ग्वेरा से हुई जो छापामार युद्ध के सर्मथक थे । अब क्युबा की सत्ता को गिराने की तैयारी शुरु की गयी । कई दौर की उतारचढाव भरे संघर्ष के बाद बातिस्ता और राष्ट्रपति क्युबा छोड भाग गये । ३२ साल के क्यास्त्रो ने इन संघर्षाें का नेतृत्व किया ।         

 वे फरवरी १९५९ से दिसम्बर १९७६ तक क्युबा के प्रधानमंत्री तथा राज्य परिषद के अध्यक्ष पद पर रहे । परिषद का अध्यक्ष राष्ट्रपति का पद भी था । उन्होंने उम्र के कारण २००८ में पद से इस्तीफा दिया । वे अन्त तक कम्युनिष्ट पार्टी के प्रथम सचिव पद पर बने रहे । २५ नोवेम्वर २०१६ को उनका निधन हो गया ।       

 


 



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